चाय पान के हानि -लाभ
चाय पान के हानि -लाभ

चाय चीन,जापान,लंका एव. बर्मा में प्रचुर मात्रा में उगाई जाती है| भारत में विशेषत: देहरादून,नीलगिरी,दार्जिलिंग और आसाम में चाय की खेती की जाती है| चाय का प्रभाव मृदु उत्तेजक होने से ज्ञान तंतुओं पर इसका विशेष असर पड़ता है| तृषा,माईग्रेन ,नेत्र शूल,बवासीर,शौथ,शिरोवेदना,मूत्र कष्ट,नाड़ी की अति दुर्बलता,,आँतों के रोग तथा चिरकारी वृक्क प्रदाह में चाय उपयोगी है| मस्तिष्क के लिए चाय लाब्ज दायक है| यह निद्रा का नाश करने वाली है| जो जागृत रहना चाहते हैं चाय उनके लिए उत्तम है| भारत में गुजरात के लोग चाय के काफी शौकी न प्रतीत होते है| चाय,दूध,शकर आवश्यक मात्रा में लेकर खूब उबालते हैं फिर छानकर पीते हैं| लेकिन इस प्रकार से बनाई गयी चाय शरीर और मस्तिष्क को नुक्सान पहुंचाती है|
चाय बनाने का सही तरीका यह है:-पानी,दूध,शकर आवश्यक मात्रा में उबालें|जब उबाल आ जाये तब नीचे उतारलें और उसमें आवश्यक मात्रा में चाय पती डालकर पांच से १० मिनिट ढँक कर रखें| इसके बाद इसे छानने के बाद कुछ नाश्ता करें फिर शांति पूर्वक चाय पान करें यह चाय शरीर के लिए आरोग्यप्रद है| चाय को अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए पुदीना,इलायची ,काली मिर्च,सौंठ का पावडर ,लौंग तुलसी के पत्ती भी इच्छानुसार डाले जा सकते है|
चाय में केफीन तत्त्व होता है जो बेहद हानिकारक होता है| यह मूत्रल होता है,नाड़ी मंडल को उत्तेजित करता है और मांस पेशियों की ताकत में कमी लाता है| केफीन शरीर में तुरंत अवशोषित हो जाता है| यह शरीर से पसीने के द्वारा बाहर निकलता है| इसी केफीन के कारण चाय पीने पर स्फूर्ति का अनुभव होता है| अत; केफीन का उपयोग सर दर्द,मूत्र कृच्छ,जीर्ण वृक्क प्रदाह,ह्रदय तथा फेफड़े के शौथ पर होता है| चाय दिल की धडकन बढाती है| चाय में टेनिन नामक तत्त्व भी होता है जो शरीर को हानि करता है| इससे अनिद्रा रोग पैदा होता है| आरोग्य की दृष्टी से केफीन और टेनिक एसिड दोनों हानि कारक हैं|
ज्यादा उबाली हुई चाय में टेनिक एसिड लीवर को हानि पहुंचाता है| यह रुधिर वाहिनियों की दीवारों को कठोर बनाता है| रक्त संचरण में बाधा डालता है| सस्ती तथा बारीक चुरा जैसी चाय में टेनिक एसीड की मात्रा ज्यादा होती है| चाय का अधिक व्यवहार करने से दुर्बलता आती है चेहरा फीका पड जाता है, पाचन क्रिया मंद और विकृत हो जाती है| कब्ज की बीमारी लग जाती है| ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है|
चाय के अधिक सेवन से नींद न आना,वीर्य का पतलापन , सहनशीलता का नाश,,नाड़ी -शूल,हृदय की क्रिया अनियमित होना, और छाती में दर्द जैसे लक्षण उत्पना हो जाते है| कड़क और ज्यादा मीठी चाय पीने के ज्यादा दुष्प्रभाव होते हैं|
चाय के विकल्प के तौर पर पुदीना,तुलसी,लौंग,इलायची,दूध,पानी,शकर आवश्यक मात्रा में मिलाकर ,उबालकर छानकर पीजिए| यह शरीर और मन के लिए हितकारी है|
चाय के लाभ
चाय एक प्रकार के पेड़ की पत्ती होती है। यह बहुत प्रसिद्ध है। चाय नियमित पीने के लिए नहीं है। यह आवश्यकतानुसार पीने पर लाभदायक होती है। चाय वायु और ठंडी प्रकृति वालों के लिए हितकारी है। भूखे पेट चाय पीने से पाचन शक्ति खराब होती है तथा सोते समय चाय पीने से नींद कम आती है। चाय से स्नायुविक दर्द न्यूरेल्जिया और रक्तचाप बढ़ता है। अत: ऐसे रोगियों के लिए चाय हानिकारक होती है।
यद्यपि चाय को दवा के रूप में विभिन्न कष्टों में प्रयोग करके लाभान्वित हो सकते हैं, किन्तु फिर भी इसे दैनिक पेय के रूप में प्रयोग करने से हानियां होती हैं। चाय आजकल संसार भर में घर-घर आतिथ्य सत्कार का प्रतीक है। घर, प्रवास, खेलकूद के मैदानों, महफिलों, सेमिनारों, राजनीतिक बैठक या सम्मेलनों, कवि सम्मेलन या मुशायरा आदि किसी भी आयोजनों में देखें। सभी जगहों पर चाय का प्रवेश हो चुका है।
नियमित रूप से चाय पीने से यह बहुत अधिक नुकसान करती है। यह पाचनशक्ति को नष्ट करती है और रक्त को जलाकर शरीर को सुखा देती है। चाय बुद्धिजीवियों, मस्तिष्क से काम लेने वालों और ठंडे प्रदेश के निवासियों का पेय माना जाता है। ज्ञान तन्तुओं को यह क्षणिक उत्तेजना देती है। चाय मस्तिष्क की अपेक्षा मांस, धातु पर उत्तेजक प्रभाव डालती है। चाय पीने के बाद शारीरिक थकान कम लगती है। परन्तु अधिक चाय पीने से पाचनशक्ति खराब हो जाती है। चाय में कोई पोषक तत्व नहीं होता है। इसकी पत्तियों में प्रोटीन होता है। परन्तु चाय जिस विधि से बनाई जाती है। उस तरीके से बनी हुई चाय हानिकारक होती है।
चाय पीना कम से कम हानिकारक हो : इसके लिए चाय बनाने में ताजे पानी का प्रयोग करना चाहिए। बासी पानी नहीं। यदि बासी पानी हो तो उसे लोटे में भरकर ऊंचे से नीचे डालना चाहिए। ताकि उसमें स्वच्छ हवा मिल जाए। पानी खौलने लग जाए तो उसे केतली में भर लें और उसमें उचित मात्रा में चाय डालकर केतली का ढक्कन बंद कर दें। इसके बाद उसमें आवश्यकतानुसार चीनी और दूध मिलाकर पियें। अधिक उबली हुई लाल रंग की चाय कभी भी नहीं पीनी चाहिए।
वैज्ञानिक मतानुसार : चाय में मुख्य द्रव्य कैफीन है। उसका असर 3 प्रकार से होता है- मूत्रल (मूत्रवर्धक), नाड़ी तंत्र की उत्तेजना और समस्त मांसपेशियों में बल की अनुभूति होती है। कैफीन हृदयोत्तेजक है। उसका उपयोग सिर दर्द, मूत्रकृच्छ, शक्तिपात, हृदय और नाड़ियों की कमजोरी, फेफड़ों की सूजन, हृदय विकार के कारण होने वाली सूजन, जीर्ण वृक्कदाह आदि पर होती है। यदि चाय में कैफीन नहीं होती तो जो चाय का महत्व है वह नहीं होता, चाय में दूसरा पदार्थ टैनिन है। टैनिन शरीर को अत्यधिक हानि पहुंचाता है।
चाय में कुछ गुण भी होते हैं। चाय पाचनशक्ति को जाग्रत करती है और यह भोजन में रुचि को उत्पन्न करती है। यह त्वचा और मूत्राशय को प्रभावित कर पसीना, पेशाब बहुत अधिक मात्रा में लाती है। चाय ठंडे जोश को जाग्रत करती है और थकान को उतारती है। भोजन के एक घंटे बाद चाय पीनी चाहिए। चाय पित्त को बढ़ाती है। अत: भोजन के 3-4 घंटे बाद आहार के जिस अंश का पाचन न हुआ हो, उसे चाय पकाकर नीचे उतारती है।
ठण्डी या बरसात में : प्रात: कोई गर्म पेय पीने की इच्छा हो तो चाय के बदले काढ़ा पीना चाहिए। काढे़ में सोंठ, तज, पुदीना, तुलसी के पत्ते, इलायची आदि कूटकर डाला जाता है। यह देशी चाय अत्यन्त ही गुणकारी, पाचक और जुखाम, पीड़ा, मन्दाग्नि आदि को मिटाती है।
चाय के समान यदि कोई अन्य उपयोगी पेय बनाना हो तो अर्जुन की छाल 50 ग्राम, सोंठ और तज 5-5 ग्राम गुलाब के फूल और वीकरे के पत्ते 20-20 ग्राम तथा तुलसी का पत्ता और इलायची 10-10 ग्राम लें। इन सबका चूर्ण बनाकर, चाय की विधि के अनुसार पेय तैयार किया जा सकता है।
रंग : चाय हरी, स्याही और मटमैली रंग की होती है।
स्वाद : इसका स्वाद तीखा होता है।
स्वभाव : चाय की प्रकृति गर्म होती है।
चाय से हानियां : अनिद्रा के रोगी तथा नशीली दवा खाने वालों के लिए चाय हानिकारक है। ऐसे रोगी यदि चाय पिये तो रोग बहुत गंभीर बन जाएगा। चाय पीने से नींद कम आती है। चाय अम्ल पित्त और परिणाम शूल वालों के लिए हानिकारक है। यह खुश्की लाती है तथा दमा पैदा करती है।
भूख न लगना : चाय को ज्यादा देर तक उबालने से उसमें से टैनिन नामक रसायन निकलता है जो पेट की भीतरी दीवार पर जमा हो जाता है जिसके कारण भूख लगना बंद हो जाता है।
वात : चाय पेशाब में यूरिक एसिड बढ़ाती है। यूरिक एसिड से गठिया, जोड़ों की ऐंठन बढ़ती है। अत: वात के रोगियों को चाय नहीं पीना चाहिए। चाय वीर्य को पतला करती है अत: नवयुवक इसे सोचसमझकर पीयें। चाय यकृत को कमजोर करती है तथा खून को सुखाती है। चाय त्वचा में सूखापन, खुश्की लाता है जिससे सूखी खुजली चलती है और त्वचा सख्त होती है।
दोषों को दूर करने वाला : चीनी और दूध चाय के दोषों को दूर करता है।
तुलना : बड़ी इलायची, जायफल, तुलसी की पत्ती और अदरक से चाय की तुलना की जा सकती है।
मात्रा : 1 से २ ग्राम।
गुण : चाय शीतल स्वभाव वालों के लिए लाभकारी होती है। मन को प्रसन्न करती है तथा शरीर में गर्मी लाती है। सुस्ती को दूर करती है तथा पसीना अधिक लाती है। प्यास को रोकती है। शरीर को रंगदार करती है। खून के जोश को ठण्डा करती है।
चाय का विभिन्न रोगों में उपयोग :
1. जुखाम: यदि जुकाम, सिर दर्द, बुखार तथा खांसी ठण्ड से हो, आंख से पानी निकलता हो या पतला झागदार, श्लेष्मा (कफ, बलगम) नाक से निकलता हो तो चाय पीना लाभदायक होता है। इससे ठण्ड दूर होकर पसीना आता है तथा सर्दी में आराम मिलता है। यदि जुखाम खुश्क हो जाए, कफ गाढ़ा, पीला बदबूदार हो और सिरदर्द हो तो चाय पीना हानिकारक होता है।
2. पेशाब अधिक लानाः चाय पेशाब अधिक लाती है जहां पेशाब कराना ज्यादा जरूरी हो, चाय पीना लाभदायक होता है।
3. जलना: किसी भी तरह कोई अंग जल गया हो, झुलस गया हो तो चाय के उबलते हुए पानी को ठण्डा करके उसमें साफ कपड़ा भिगोकर जले हुए अंग पर रखें एवं पट्टी बांधे। यह पट्टी बार-बार बदलते रहें। इससे जले हुए अंगों पर फफोले नहीं पड़ते और त्वचा पर जलने का निशान भी खत्म हो जाता है।
4. बवासीर:
• चाय की पत्तियों को पानी में पीसकर गर्म करें और गर्म-गर्म पिसी हुई चाय का बवासीर पर लेप करें। इससे बवासीर का दर्द दूर हो जाता है।
• चाय की पत्तियों को पीसकर मलहम बना लें और इसे गर्म करके मस्सों पर लगायें। इस मलहम को लगाने से मस्से सूखकर गिरने लगते हैं।
5. पेचिश: चाय में पालिफिनोल तत्व पाया जाता है जो पेचिश के कीटाणुओं को नष्ट करता है। पेचिश के रोगी चाय पी सकते हैं। इससे लाभ मिलता है।
6. अम्लपित्त: अम्लपित्त के रोगी के लिए चाय बहुत ही हानिकारक होता है।
7. मोटापा दूर करना: चाय में पोदीना डालकर पीने से मोटापा कम हो जाता है।
8. अवसाद उदासीनता सुस्ती: पानी में चाय की पत्तियों को उबालकर इस पानी को गर्म-गर्म पीने से शरीर के अन्दर जोश आ जाता है और आलस्य या अवसाद खत्म हो जाता है।
9. आग से जलने पर: चाय के उबले हुए पानी को ठण्डा करके किसी साफ कपड़े के टुकड़े या रूई से शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से जलन और दर्द समाप्त हो जाता है।
10. गले में गांठ का होना: चाय की पत्तियों को उबालकर और छानकर इसके पानी
आम तौर हर किसी की दिन की शुरूआज चाय की चुस्की के साथ होती हैं. इस चाय के बिना ना दिन ठीक से शुरु हो पाता है और ना ही पूरा. लेकिन क्या जानते हैं आपकी पसंद की चाय या कॉफी आपके भविष्य के कई राज को खोल सकती है. आपको भले ही इस बात पर यकीन ना आये लेकिन ये सच है.
आइये आगे जानते है इस राज के बारे में...
1-काली चाय पसंद करने वाले लोग अपनी पसंद की चाय की ही तरह स्ट्रांग और प्योर होते हैं. आपको झमेलों में पड़ना पसंद नहीं होता है.
2-ग्रीन टी पीने वाले लोग ट्रेंड्स को फॉलो करना चाहते हैं और इनकों प्रभावित करना आसान होता है.
3-केवल दूध वाली चाय पीने वाले लोग नेतृत्व करने के लिए बने हैं. आपके विचार नए होते हैं. आपको दूसरों से हट कर कुछ करना पसंद है
4-बिना चीनी की दूध वाली चाय पीने वाले लोग दिल से एक परम्परावादी हैं और आप जानते हैं कि ज़िन्दगी से आपको क्या चाहिए.
5-कम दूध और कम चीनी की चाय पीने वाले लोग जो भी पसंद है उसे पाने से आप कभी पीछे नहीं हटते हैं. आप एक कम्फर्ट भरी ज़िन्दगी जीना चाहते हैं.
6-दूध वाली मीठी चाय पीने वाले लोग अपनी इच्छाओं को पूरा करने से पीछे नहीं
हटते हैं और खुद को भरपूर पैम्पर करते हैं. आप दिल से जवान हैं और आपके अन्दर बचपना अब भी बाकी है.

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