.खूब खाएं दर्द भगाएं
खूब खाएं दर्द भगाएं
Healths Is Wealth
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पीरियड्स के दौरान असहनीय दर्द, थकावट और चिड़चिड़ापन आम बात है। भागदौड़ भरी दिनचर्या और असंतुलित भोजन के कारण यह समस्या और बढ़ जाती है। पीरियड्स के दौरान होने वाली परेशानियों को आप कम कर सकती हैं, बस इसके लिए आपको अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देना होगा।
मसूर की दाल दूर करेगी थकावट
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मसूर की दाल में कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन और फाइबर भरपूर मात्रा पाई जाती है। पीरियड के दौरान होने वाली थकावट से यह आपको काफी हद तक निजात दिला सकती है। यह आपके शरीर में होने वाली ऊर्जा की कमी को नियंत्रित करेगी। मसूर की दाल में ऐसा तत्व पाया जाता है जो मस्तिष्क को शांत रखने में सहायक होता है। मसूर की दाल से बने व्यंजनों को पीरियड्स के दौरान खाकर आप मन और मस्तिष्क दोनों से तरोताजा महसूस करेंगी।
खाएं आयरन से भरपूर खाना
एक वयस्क महिला को एक दिन में जितनी मात्रा में आयरन की जरूरत होती है, उतनी मात्रा में वह उसका सेवन नहीं कर पाती है। ऐसे में महिलाओं के शरीर में आयरन की कमी होना लाजिमी है। पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर में तेजी से रक्त की कमी होती है। नतीजा, कमजोरी और थकावट। वैसे तो महिलाओं को आयरनयुक्त खाना हमेशा खाना चाहिए, लेकिन पीरियड्स के दौरान इसका नियमित सेवन आपको अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करेगा। पीरियड्स के दौरान महिलाओं के लिए अंकुरित चना और गुड़ का नाश्ता अच्छा विकल्प हो सकता है।
ब्राउन राइस से पाएं अतिरिक्त पोषण
ब्राउन राइस कार्बोहाइड्रेड का अच्छा स्रोत माना जाता है। इसमें कॉम्पलेक्स कार्बोहाइड्रेड की भरपूर मात्रा होने के कारण यह धीरे-धीरे पचता है। यानी एक कटोरी ब्राउन राइस से बने व्यंजन खाने से आपके शरीर में दिनभर ऊर्जा बनी रहती है। यह मैग्नीशियम और पोटैशियम का भी अच्छा स्रोत होता है। यह पीरियड्स के दौरान शरीर में होने वाली पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने में मददगार होता है।
सलाद से पानी की मात्रा होगी संतुलित
भारतीय थाली में लोग सलाद को भले ही ज्यादा तरजीह नहीं देते हैं, लेकिन यह आपको उन दिनों में काफी राहत पहुंचा सकता है। सलाद में पानी की मात्रा काफी होती है। इससे आपके शरीर में पानी की कमी पूरी होगी। सलाद में खीरा, गाजर और चुकंदर को शामिल करें। सलाद आपके खाने के स्वाद को तो बढ़ाएगा ही, आपको दिन भर ऊर्जा भी प्रदान करेगा।
पानी में है सेहत का खजाना
पीरियड्स के दौरान बार-बार पानी पिएं। प्यास न लगने पर भी दो घूंट पानी पीने में कोई बुराई नहीं है। पानी के सेवन से थकावट कम होगी और त्वचा पीरियड्स के दिनों में भी चमकती-दमकती नजर आएगी। पीरियड्स के दौरान पेट और सिर में होने वाले दर्द से भी ढेर सारा पानी पीकर आप बच सकती हैं। रात में सोने के पहले एक गिलास पानी पीकर सोएं। पानी की बोतल बिस्तर के पास रखकर सोएं। रात में जब भी आपको असहज महसूस हो, पानी पिएं। राहत मिलेगी।
दूध-दही से दूर होगी कैल्शियम की कमी
प्रोटीन और कैल्शियम की सबसे अधिक मात्रा दूध और दही में पाई जाती है। वैसे तो महिलाओं को हर दिन दूध पीना चाहिए, लेकिन पीरियड्स के दौरान दूध को अपनी भोजन में शामिल करना न भूलें। अगर आपको सिर्फ दूध पीने में अच्छा नहीं लगता है, तो आप उसमें हेल्थ सप्लीमेंट मिलाकर पी सकती है। हो सके तो दूध में एक चुटकी हल्दी मिलाकर पिएं। हल्दी में एंटीऑक्सिडेंट पाए जाते हैं, जो पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द को कम करता हैं।
तलाशें अपना सच्चा प्यार
प्यार को कहीं तलाशा नहीं जाता, वह तो आपके भीतर ही कहीं होता है।
प्यार जीवन को पूरा करने का अहसास या कहा जाए तो जिंदगी का दूसरा नाम ही तो प्यार है। वेलेंटाइन डे इस प्यार के इजहार और अपने प्यार को खास अहसास दिलाने का दिन है लेकिन, आखिर अपना सच्चा प्यार पाया कैसे जाए। कैसे पहचाना जाए कि यही है आपका वेलेंटाइन-
प्यार को कहीं तलाशा नहीं जाता, वह तो आपके भीतर ही कहीं होता है। ठीक वैसे ही जैसे कस्तूरी मृग की खुशबू उसी में कहीं छुपी होती है, लेकिन वह उसकी तलाश में बावरा सा फिरता रहता है। वैसे ही प्रेम को सांसों की तरह हैं, हर क्षण आपके साथ। लेकिन कई बार इससे वाकिफ होने में अरसा लग जाता है। हमारी नजरों के सामने ही होता है वो, लेकिन हम उसे स्वीकार नहीं पाते। शंकायें, दुविधायें, सवाल और कई अन्य कारण उस वास्तविकता को कहीं ढंक देते हैं। और कई बार किसी से पहली ही मुलाकात में दिल के भीतर से यह आवाज आने लगती है कि हां यह वही है, जिसके लिए तुम इतने बेकरार थे। और जब भी यह अनुभूति होती है, तो यूं लगता है जैसे सारे बादल छंट गए।
प्यार तो इनसान के डीएनए में है। आदम और हौव्वा से शुरू हुआ यह प्रेम और फिर फैलता ही चला गया। आदम ने जन्नत सिर्फ हौव्वा के लिए छोड़ी, वो उसके बिना अधूरा जो था। लेकिन, उस दौर में न आदम के पास विकल्प थे और न ही हौव्वा के पास। लेकिन, आज का दौर जरा अलग है। आज सच्चा प्यार मिलना मुश्किल है, क्योंकि आज अरबों की आबादी में आपको किसी ऐसे शख्स से मिलना जरूरी है जिससे लिए दिल धड़क उठे।
कौन है वो
सबसे जरूरी बात, सच्चा प्यार किसी एक दिन का मोहताज नहीं होता। यह तो जिदंगी भर का अहसास होता है। प्यार का कोई फॉर्म्ूला नहीं, जो लगाया और उत्तर मिल गया। हर किसी को अलग तरह से होता है इसका अहसास और जब यह अहसास होता है, तो दुनिया में सब कुछ खूबसूरत नजर आने लगता है। हर ओर होती हैं बस खुशियां ही खुशियां। यह मामला दिल का है, और यह कमबख्त दिल भला कब किसकी सुनता है। किस्मत खुद-ब-खुद उस शख्स से मिलवा देती है, और यह कह उठता है तुम ही तो हो, इतने बरसों से तलाश रहा था मैं जिसे। लेकिन, दुविधायें फिर भी आपकी राह में रोड़े अटका सकती हैं। चलिए हम आपका रास्ता साफ करने में मदद करते हैं। हो सकता है कि आपका प्यार आपकी आंखों के सामने हो और आप उसे देख न पा रहे हों। यह भी हो सकता है कि वो दुनिया के दूसरे कोने में बैठा हो आप की तरह तन्हा और आप ही का इंतजार करते हुए। चाहे जो भी हो, कोई न कोई इस दुनिया में आपके लिए जरूर बना है।
पहली नजर का प्यार हर नजर का प्यार
प्रेम का सार यही है- 'पहली नजर का प्यार, आखिरी नजर का प्यार और हर नजर का प्यारÓ। जब आपका पहली नजर में ही किसी को देखते ही उसकी ओर खिंचने लगे, तो इसे एक इशारा समझें। इशारा कि आपको प्यार हो चला है। पहली नजर का प्यार ही प्यार हो यह जरूरी नहीं, लेकिन यह प्यार का आधार जरूर हो सकता है। लेकिन, आप किसी को पहली बार देखते ही उसके खयालों में खोये रहते हैं, तो जनाब आपका दिल किसी की नजरों में गिरफ्तार हो चला है, हुजूर आपको प्यार हो चला है।
सीमाओं से परे
इश्क की कोई हद नहीं होती। यह खुद तय करता है अपने नियम और कायदे। जिसके लिए आपके दिल में प्रेम होता है उसकी मदद करने के लिए आप कुछ भी करते हैं। आपको ऐसा करते हुए न कभी अजीब लगता है और न ही आपको कुछ अलग करने का अहसास ही होता है। अगर दूसरा व्यक्ति भी आपकी मदद के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है, तो जनाब यही प्यार है। प्यार में शर्तें नहीं होतीं, प्यार में सौदा नहीं होता। यह तो होता है और होता है.... प्यार मैं और तुम के बीच की दूरियां पाटते हुए हम तक ले जाने का नाम है।
सब कुछ भुला के
कहते हैं, 'इश्क न पूछे दीन धर्म और इश्क न पूछे जातÓ। प्रेम नियमों पर कहां चलता है। सामाजिक वृजनायें तोडऩे का नाम ही तो प्यार है। आपके दोस्तों की सलाह, पढ़ी-पढ़ाई बातें, आपके कुछ पूर्वाग्रह... सब नेपृथ्य में चले जाते हैं और रह जाता है तो बस प्रेम। आपके हृदय में तमाम बातों को झुठलाया जाता है, और आपको अहसास होता है कि यही है वो सच्चा प्यार। प्यार विकल्प नहीं तलाशता। आपको कोई इनसान पसंद है, तो बस पसंद है... अपनी खूबियों और खामियों के साथ। आप वैसे ही चाहते हैं उसे... इस बात से बेपरवाह कि वो भी आपके बारे में वैसा ही सोचे। प्यार कोई निवेश नहीं जिसमें आपको रिटर्न की उम्मीद हो। प्यार है, तो बस है। और अगर आप भी ऐसा ही सोचते हैं, तो मान लीजिए कि यह हर लिहाज से सच्चा प्यार है।
प्यार का दर्द है...
उसकी हंसी हो या नजर... उसकी बातें हो या व्यवहार सब कुछ आपके लिए खास होता है। अगर उसे देखते ही दिल में मीठा दर्द हो उठे, तो समझ जाइए कि दिल आपसे कुछ कह रहा है। उसके देखते ही आपका दिल प्रेम से भर आता है। सारी दुनिया में सबसे प्यारा दिखता है वो। ठीक वैसे ही जैसे मां-बाप के लिए उनकी औलाद होती है। अगर किसी को देखकर आपके दिल में भी ऐसा हो, तो मान जाइए कि आप प्यार में हैं। इंतजार मत कीजिए डूब जाइए इस दरिया में।
खिंचा जाऊं मैं तेरी ओर
प्रेम महज आकर्षण नहीं यह और बात है, लेकिन आकर्षण के बिना प्रेम संभव भी नहीं। प्रेम का आधार है आकर्षण... अगर हर सूरत में आप दोनों एक दूजे के साथ रहना चाहते हैं और किसी भी कीमत पर आपको जुदाई बर्दाश्त नहीं, तो यह इशारा है सच्चे प्यार का। आपके दिल को जो भा जाए, जरूरी नहीं कि वो देखने में हूर की तरह हो, कहते हैं लैला का रंग बेहद काला था, लेकिन कैस को वो ऐसी भायी कि वो गलियों में मजनूं बनकर घूमने लगा। अगर, आपके दिल में भी यह आकर्षण महीनों बना रहता है, तो जनाब आपको सच्चे वाला प्यार हो गया है।
सबसे जरूरी बात, प्रेम सत्य का ही प्रतिबिंब है। अगर यह सच नहीं है, तो प्रेम नहीं है। तो सच और सत्तचरित्र होना ही प्रेम की पहली और आखिरी शर्त है।
वेलेंटाइन डे पर तोहफे के साथ फूल देना न भूलें
वेलेंटाइन डे पर लोग कुछ न कुछ खास तोहफा देना चाहते हैं. आप भी देना चाहते होंगे. बहुत अच्छी बात है, मगर इन तोहफों की भीड़ में 'उनके लिएÓ फूल ले जाना मत भूलिएगा. क्योंकि फूल ही हैं जो आपके दिल की बात उन तक पहुंचाते हैं. फूल बगैर एक शब्द बोले, आसानी से आपके मन का हर राज खोल देते हैं.
क्यों याद नहीं है? जब आपने पहली बार लाल गुलाब दिया था तो आपको कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी थी कि 'मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं.Ó आज भी उस एहसास को जिंदा रखते हुए अपने महंगे तोहफों के बीच कुछ प्यारे से फूल रखना न भूलें.
वेलेंटाइन डे पर फूलों का खास महत्व होता है. आप चाहे कितना भी महंगा तोहफा दे दें, फूलों के बगैर वह अधूरे होते हैं. तोहफे आपके दिल की बात नहीं कहते.
उम्मीद है कि इस वेलेंटाइन डे आपके दिल के आंगन में सच्चे प्यार का फूल खिले...
यौवन काल में किशोरियों की उचित देखभाल

बाल्यावस्था की सादगी और भोलेपन की दहलीज पार करके जब किशोरियां यौवनावस्था में प्रवेश करती हैं, यही वय:संधि कहलाती है। इस दौर में परिवर्तनों का भूचाल आता है। शरीर में आकस्मिक आए परिवर्तन न केवल शारीरिक वृद्धि व नारीत्व की नींव रख़ते हैं, वरन मानसिक परिवर्तनों के साथ मन में अपनी पहचान व स्वतंत्रता को लेकर एक अंर्तद्वंद भी छेड देते हैं। इन परिवर्तनों से अनभिज्ञ कई लडकियां यह सोचकर परेशान हो उठती हैं कि वे किसी गंभीर बीमारी से त्रस्त तो नहीं है।
यौन काल की यह अवधि 11 से 16 वर्ष तक होती है। कद में वृद्धि, स्तनों व नितंबों का उभार, प्यूबर्टी, शरीर में कांति व चेहरे पर लुनाई में वृद्धि- ये बाहरी परिवर्तनों का कारण होता है। आंतरिक रूप में डिंब-ग्रंथि का सक्रिय होकर एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रॉन हॉर्मोन्स का रक्त में सक्रिय होना। इस दौरान जनन यंत्रों का विकास होता है व सबसे बडा लक्षित परिवर्तन होता है मासिक धर्म का प्रारंभ होना। इस दौरान प्रकृति नारी को मां बनने के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से विकसित करती है।
रोमांच व आश्चर्य का मिश्रित भाव
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शारीरिक बदलाव अकेले नहीं आते, इनसे जुडे अनेक प्रश्न व भावनाएं मन के अथाह सागर में हिलोरें लेने लगती हैं। रोमांच और आश्चर्य मिश्रित मुग्धभाव के साथ वह एक अनजाने भय और संकोच से भी घिर जाती है। कभी सुस्त तो कभी उत्साहित। कभी लज्जाशील-विनम्र तो कभी उद्दंड, गुस्सैल और चिड़चिड़ी। उसे कुछ समझ नहीं आता कि क्या और क्यों हो रहा है और शुरू होता है परिवार वालों के साथ अपनी पहचान और स्वतंत्रता का प्रतिद्वंद्व।
मासिक धर्म से उत्पन्न परिवर्तन
मासिक धर्म से संबंधित मासिक व भावनात्मक परिवर्तन सबसे कठिन होता है। लडकी स्वयं को बंधनयुक्त व लडकों से हीन समझने लगती है। वह समाज के प्रति आक्रोशित हो उठती है। लडकियों के आगामी जीवन को सामान्य, सफल, आत्मविश्वासी, व्यवहारकुशल और तनावरहित बनाने के लिए अति आवश्यक है इस अवस्था को समझना, उन्हें शारीरिक परिवर्तनों व देखरेख से अवगत कराना, मानसिक व शारीरिक परिवर्तनों पर चर्चा करना और समय-समय पर उन्हें पोषक भोजन, व्यायाम, विश्राम, मनोरंजन आदि के प्रति जागरूक करना ताकि उनका विकास सही हो सके।
विशेष सावधानी की जरूरत
यदि वय:संधि 11-12 वर्ष से पूर्व आ जाए या 16-17 वर्ष से अधिक विलंबित हो जाए तो दोनों ही स्थितियों में यौन ग्रंथियों की गडबडिय़ों की उचित जांच व इलाज अति आवश्यक है। यदि लडकी अल्पायु में जवान होने लगे तो न केवल देखने वालों को अजीब लगता है वरन् लडकी स्वयं पर पडती निगाहों से घबराकर विचलित हो सकती है। कई बार शीघ्र कामेच्छा जागृत होकर नासमझी में अनुचित कदम उठा सकती है। ऐसे में न केवल उसे उचित शिक्षित कर सावधानियां बरतनी चाहिए बल्कि डॉक्टर की भी राय लेनी चाहिए कि डिंबकोषों की अधिक सक्रियता, कोई भीतरी खऱाबी या कोई ट्यूमर तो नहीं।
डॉक्टरी जांच की आवश्यकता
यदि वय:संधि 17 वर्ष से अधिक विलंबित हो तो भी डॉक्टरी परीक्षण अति आवश्यक है। कई बार वंशानुगत या जन्मजात किसी कमी के कारण मासिक धर्म नहीं होता। ऐसे में लापरवाही ठीक नहीं, क्योंकि लडकियां हीन भावना व उदासीनता का शिकार हो सकती है व हताश हो आत्महत्या जैसे दुष्कृत्य भी कर सकती है। समय पर इलाज से शारीरिक व मानसिक वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है।
मां का दायित्व
माताओं को चाहिए कि वे स्वयं लडकियों को भी उनके भीतर होने वाले परिवर्तनों के बारे में सही ज्ञान दें। पोषक भोजन, उचित व्यायाम, स्वास्थ्यवर्धक दिनचर्या व स्वच्छता के बारे में प्रेरित करें।
मासिक धर्म
प्रारंभ- अधिकांशत: 10 से 13 वर्ष की आयु में प्रथम मासिक आ जाता है, पर यदि 8 साल के पहले प्रारंभ हो जाए या 16 साल तक भी न हो तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
चक्र- प्राय: 24 से 25 दिन का होता है, किंतु यदि अतिशीघ्र हो या 35 दिन से अधिक विलंब हो तो यह हारमोन की गडबडी का सूचक है।
रक्तस्राव- साधारणत: 4-5 दिन की अवधि में 50-80 मिली रक्त जाता है, किंतु यदि ज्यादा मात्रा व अवधि में खून जा रहा हो या गट्टे जाते हों तो खून की कमी होने का डर बना रहता है।
दर्द- मासिक में थोडा-बहुत दर्द होना स्वाभाविक है, पर यदि असहनीय दर्द हो तो डॉक्टरी परीक्षण आवश्यक है।
श्वेत प्रदर- माह के मध्य में जब अंडा फूटता है तो मासिक प्रारंभ होने के 1-2 दिन पूर्व जननांग से थूक समान स्राव होना स्वाभाविक है, पर गाढा दही समान व खुजलीयुक्त स्राव संक्रमण के कारण होता है।
कुछ सामान्य समस्याएं
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कद
किशोरियों का कद औसतन माता-पिता के कद पर आश्रित होता है। पौष्टिक आहार एवं उचित व्यायाम द्वारा इसे प्रभावित किया जा सकता है, अत्यधिक बौनापन व ऊंचा कद दोनों ही हारमोन की गडबडी के सूचक हैं।
स्तन व नितंब में उभार
आजकल गरिष्ठ व तेलयुक्त भोजन व जंक फूड्स के सेवन के कारण किशोरियों के कम उम्र में ही वक्ष विकसित होने लगते हैं और नितंब में उभार आ जाता है। स्तनों में थोडा बहुत दर्द, विशेषकर माहवारी के दौरान स्वाभाविक है। शारीरिक विकास में अनियमितता नजऱ आने पर स्त्रीरोग विशेषज्ञ को अवश्य दिखाएं।
प्रोस्टेट कैंसर के लिए होम्योपैथी
प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों में होने वाला आम कैंसर है। होम्योपैथिक दवाइयों से प्रोस्टेट की सभी परेशानी में आशानुरूप परिणाम मिल रहा है। दवा खाने में आने वाले मरीजों में बड़े प्रोस्टेट, पूरी तरह से पेशाब की थैली (यूरिनरी ब्लैडर) खाली न होना, बार-बार पेशाब आना, पेशाब में जलन अथवा दर्द होने के साथ-साथ प्रोस्टेट कैंसर, एडिनोकार्सिनोमा के मरीज नियमित रूप से आते हैं जिन्हें होम्योपैथी दवाइयों से काफी लाभ मिल रहा है। कई मरीज जिनकी उम्र ६० वर्ष से ८० वर्ष थी तथा जिनको स्वयं पेशाब पूरी न होने के कारण कैथेटर द्वारा पेशाब करने की सलाह अन्य चिकित्सकों (सर्जन) द्वारा दी गई थी। होम्योपैथिक दवाइयों के कुछ समय के प्रयोग से उन्हें कैथेटर से भी मुक्ति मिल गई और पेशाब से संबंधित सभी समस्याएं भी खत्म हो गई।
कैंसर के उपचार के लिए वनस्पति, जानवर, खनिज पदार्थ और धातुओं से बनी 200 से भी अधिक होम्योपैथी दवाईयां उपयोग में लाई जा सकती हैं। कैंसर के उपचार के लिए उपयोग में आने वाली होम्योपैथिक औषधि का चयन रोगी के लक्षण तथा रोग की अवस्था एवं उसकी पैथालॉजिकल रिपोर्ट के आधार पर की जा सकती है।
होम्योपैथी उपचार सुरक्षित हैं और शोध के अनुसार कैंसर और उसके दुष्प्रभावों के इलाज के लिए होम्योपैथी उपचार असरदायक हैं। यह उपचार आपको आराम दिलाने में मदद करता है और तनाव, अवसाद, बैचेनी का सामना करने में मरीज की मदद करता है। यह उल्टी, मुंह के छाले, बालों का झडऩा, अवसाद और कमज़ोरी जैसे दुष्प्रभावों को घटाता है। ये औषधियां दर्द को कम करती हैं, उत्साह बढा़ती हैं और तन्दुरूस्ती का बोध कराती हैं, कैंसर के प्रसार को नियंत्रित करती हैं, और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाती हैं। कैंसर के रोग के लिए एलोपैथी उपचार के उपयोग के साथ-साथ होम्योपैथी चिकित्सा का भी एक पूरक चिकित्सा के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।
रेडिएशन थैरेपी, कीमोथैरेपी और हॉर्मोन थैरेपी जैसे परंपरागत कैंसर के उपचार से अनेकों दुष्प्रभाव पैदा होते हैं। ये दुष्प्रभाव हैं - संक्रमण, उल्टी होना, जी मिचलाना, मुंह में छाले होना, बालों का झडऩा, अवसाद (डिप्रेशन), और कमज़ोरी महसूस होना। होम्योपैथी उपचार से इन लक्षणों और दुष्प्रभावों को नियंत्रण में लाया जा सकता है। रेडियोथेरिपी के दौरान अत्यधिक त्वचा शोथ (डर्मटाइटिस) और कीमोथेरेपी-इंडुस्ड स्टोमेटायटिस के उपचार में होम्योपैथिक दवाइयां का प्रयोग असरकारक पाया जा रहा है।
आधुनिक बनें सेहत से न खेलें
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सोने की आसमान छूती कीमतों के चलते युवाओं का रुझान आर्टिफिशियल ज्वेलरी की ओर तेजी से बढ़ता जा रहा है। भला ऐसा हो भी क्यों न, वह जेब पर भारी भी नहीं पड़ती और उसके खोने या चोरी होने पर ज्यादा दुख भी नहीं होता। फैशन के जमाने में ऐसी और भी अनेक एक्सेसरीज हैं, लेकिन उनके इस्तेमाल में लापरवाही सेहत पर भारी भी पड़ सकती है। फैशन की चीजों को अपनाने से पहले और बाद में कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। आइए जानें, क्या-क्या सावधानियां बरतें।
बाजार में मिलने वाली आकर्षक, चमकती, रंग-बिरंगी आर्टिफिशियल ज्वेलरी और आपको फैशनेबल बनाने वाली अन्य चीजें बेशक बहुत सुन्दर और सस्ती होती हैं, परन्तु यह जानना जरूरी है कि इन्हें पहनना आपकी त्वचा और सेहत के लिए महंगा साबित न हो जाये।
एलर्जी के लक्षण
कई बार आर्टिफिशियल ज्वेलरी पहनने से त्वचा पर लाल चकत्ते, रैशेज, खुजली व दाने उभर आते हैं। कई युवक व युवतियों को कान व नाक के गहने पहनने के एक घंटे के अंदर ही खुजली होने लगती है और कुछ ही देर में त्वचा पर घाव या फफोले हो जाते हैं। धातुओं से एलर्जी का प्रभाव ज्यादातर त्वचा की ऊपरी सतह पर ही होता है, परन्तु कई बार इन घावों से बने दागों को ठीक होने में सालों लग जाते हैं। इसलिए बेहतर होगा कि आप ऐसी धातुओं के प्रयोग से बचें ।
कब तक रहते हैं लक्षण
वैसे तो आर्टिफिशियल ज्वेलरी से होने वाली एलर्जी के लक्षण ठीक होने में दो से तीन घंटे लग जाते हैं, परन्तु कभी-कभी एलर्जी के निशान और सूजन 2-३ दिनों तक भी बनी रह सकती है। ऐसे में आप घर पर ही उनकी देखभाल कर सकते हैं। उस त्वचा पर लैक्टो कैलामिन, एलोवेरा का रस, मॉइस्चराइजर, टेलकम पाउडर आदि लगा सकते हैं। अगर फिर भी सूजन व लालिमा बनी रहे तो बिना देर किए किसी अच्छे त्वचा विशेषज्ञ से सलाह लें और उपचार कराएं।
न करें नजरअंदाज
अगर लक्षणों को नजरअंदाज करते हुए आर्टिफिशियल ज्वेलरी लंबे समय तक पहनी जाये तो वह समस्या कॉन्टेक्ट डर्मेटाइटिस का रूप ले सकती है। ऐसे में आभूषण के संपर्क में रहने वाले अंग में सूजन आ जाती है। त्वचा लाल हो सकती है। उस पर पानी से भरे दाने उठ सकते हैं। उन से पानी रिस सकता है, पपड़ी जम सकती है। त्वचा सख्त हो कर खुरदरी और मोटी हो जाती है। संक्रमण हो जाने पर मवाद भी पड़ सकता है। उस हिस्से में खूब खुजली के साथ जलन होती है।
पियर्सिग का फैशन
पियर्सिग का फैशन इन दिनों पूरे जोरों पर है। हालांकि पियर्सिग करने का चलन हमारे देश में करीब 25 सौ साल पुराना है। पहले लोग अपने कान और नाक में पियर्सिग करा कर उन्हें सुन्दर आभूषणों से अलंकृत करते थे, वहीं अब युवा नाक, कान के अलावा आंख की भोहों, जीभ, नाभि, छाती व होठों के ऊपर भी पियर्सिग करवाने लगे हैं। पियर्सिग करते समय अक्सर आर्टिफिशियल ज्वेलरी का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे संक्रमण की आशंका दोगुनी हो जाती है।
पियर्सिग एक पारंपरिक तरीका है, जिसमें त्वचा पर पंक्चर करके उसमें ज्वेलरी पहनी जाती है। जैसे-जैसे पियर्सिग से जुड़ी तकनीक आधुनिक होती गई, वह सुरक्षित होती गई और इससे जुड़े जोखिम भी कम होते गए। फिर भी डॉक्टरों के मुताबिक पियर्सिग से जुड़े गंभीर संक्रमण के कारण अभी भी हर साल पियर्सिग पहनने वालों में 10 से 15 प्रतिशत लोग हॉस्पिटल आते हैं।
जांच करते रहें
पियर्सिग करवाने के बाद संक्रमण के बारे में चेक कराते रहना जरूरी है। आपको दो-तीन दिन तक पियर्सिग वाली जगह के आसपास छूने पर कुछ गर्म-सा महसूस होगा, लेकिन इससे ज्यादा दिन तक अगर ऐसा होता है तो संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। उसके आसपास की त्वचा लाल होने लगे या सूजन आने लगे या फिर उस जगह से पस निकलने लगे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
बरतें सावधानी
संक्रमण से बचने के लिए पियर्सिग किसी प्रोफेशनल से ही करवाएं। अक्सर युवा पैसे बचाने की कोशिश में ऐसी जगह से भी पियर्सिग करा लेते हैं, जहां साफ-सफाई पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता। इससे संक्रमण की आशंका काफी बढ़ जाती है।
पियर्सिग कराने से पहले देख लें कि उस क्लीनिक में साफ-सफाई की पर्याप्त व्यवस्था है या नहीं।
जिस गन से छेद किया जाने वाला है, उसका भी हर बार साफ किया जाना जरूरी है।
पियर्सिग करवाने के बाद उस क्षेत्र को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए और वहां एंटीबायोटिक क्रीम लगाना जरूरी है। इससे संक्रमण नहीं होगा। ऐसा आप 15 दिनों तक रोज करें।
अगर पियर्सिग के बाद संक्रमण हो गया है तो डॉक्टर की सलाह के बाद एंटीबायोटिक टेबलेट ले सकते हैं।
किस्मत और कैंसर
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कैंसर के बारे में हमारी जानकारी लगातार बढ़ रही है, लेकिन अब भी यह बहुत रहस्यमय बनी हुई है। इसका ठीक-ठीक कारण भी हमें पता नहीं है और इस वजह से इसका ठीक-ठीक इलाज भी नहीं है। कैंसर का इलाज मुख्यत यही है कि कैंसरग्रस्त हिस्से को या तो दवाओं से या रेडिएशन से नष्ट कर दिया जाता है या सर्जरी करके निकाल दिया जाता है। कारण पता नहीं है, इसलिए इसे खत्म करने का कोई अचूक इलाज हमारे पास नहीं है।
हम यह जानते हैं कि कुछ आनुवंशिक कारणों और कुछ जीवन-शैली या पर्यावरण से जुड़े कारणों की वजह से कैंसर होने की आशंका बहुत बढ़ जाती है। लेकिन ये कारण कैंसर होने में सहायक होते हैं, इनकी वजह से कैंसर होता है, यह नहीं कह सकते। अब एक शोध ने बताया है कि कैंसर के एक-तिहाई प्रकार ही ऐसे हैं, जिनका आनुवंशिक कारणों या जीवन- शैली से संबंध है। बाकी दो-तिहाई सिर्फ 'बदकिस्मतीÓ से होते हैं। यानी उनके होने के कोई प्रमुख कारण नहीं बताए जा सकते।
कैंसर होने की प्रक्रिया संक्षेप में यह है कि शरीर में हर वक्त बड़ी संख्या में कोशिकाएं मरती रहती हैं और नई कोशिकाएं बनती रहती हैं। नई कोशिकाएं, पुरानी कोशिकाओं के विभाजन से बनती हैं। शरीर में यह प्राकृतिक व्यवस्था रहती है कि जितनी जरूरत हो, उतनी नई कोशिकाएं बनती हैं, उसके बाद विभाजन बंद हो जाता है। कैंसर होने का मतलब है, इस प्रक्रिया में गड़बड़ी। यानी कुछ कोशिकाओं का विभाजन बंद न होना। शरीर में नई कोशिकाएं बनाने का काम कुछ बुनियादी किस्म के 'स्टेम सेलÓ करते हैं, जो शरीर के किसी अंग की जरूरत के हिसाब से उस किस्म की कोशिकाएं बनाने लगते हैं। अमेरिका में हुए इस शोध में देखा गया कि दो-तिहाई किस्म के कैंसर में स्टेम सेल के जेनेरिक स्वरूप में बिना किसी ज्ञात कारण के बदलाव हो जाता है, उसमें न कोई आनुवंशिक कारण देखा जा सकता है, न ही जीवन-शैली संबंधी कोई कारण। लेकिन एक-तिहाई किस्म के कैंसर का आनुवंशिक या जीवन-शैली से जुड़े कारणों से सीधा संबंध देखा जा सकता है, इनमें फेफड़ों और त्वचा का कैंसर शामिल है।
यानी धूम्रपान व कैंसर का रिश्ता बहुत साफ है, वैसे ही तेज धूप की अल्ट्रावायलेट किरणों का त्वचा के कैंसर से सीधा संबंध है। किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि धूम्रपान से ही कैंसर होता है, इसका मतलब यही है कि धूम्रपान करने पर कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। अभी हमारी जानकारी कैंसर के आनुवांशिककारणों तक सीमित है, उसके केंद्रीय कारण तक हम नहीं पहुंच पाए हैं। कई जानकारों का कहना है कि कैंसर से संबंधित शोध में चिकित्सा तंत्र का यह अहंकार आड़े आ रहा है कि तंत्र स्वीकार करना नहीं चाहता कि वह किसी चीज के बारे में नहीं जानता। इसलिए डॉक्टर कैंसर के तरह-तरह के कारण बताते हैं और बुनियादी कारणों तक नहीं पहुंच पाते। यह शोध ईमानदारी से स्वीकार करता है कि दो-तिहाई किस्म के कैंसर के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है। इस स्वीकारोक्ति से कहीं न कहीं कैंसर के बहुत बुनियादी कारणों तक पहुंचने में मदद मिलेगी। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि कैंसर से बचने के एहतियात न बरते जाएं।
जिन एक-तिहाई किस्म के कैंसर पर जीवन- शैली का असर होता है, उनमें कई बहुत आम कैंसर भी हैं। स्वस्थ जीवन- शैली कैंसर से बचने की शत-प्रतिशत गारंटी नहीं है, लेकिन इससे कई किस्म के कैंसर होने की आशंका बहुत ही कम हो जाती है। वैसे भी शत-प्रतिशत जिंदगी में क्या होता है? इसलिए स्वस्थ जीवन-शैली को अपनाए रहने में ही भला है, बाकी किस्मत पर छोड़ दें।
प्रोस्टेट कैंसर: बेहतर उपाय रोबोटिक सर्जरी
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प्रोस्टेट कैंसर का इलाज अब रोबोटिक प्रोस्टेटेक्टामी से काफी सफलतापूर्वक किया जाने लगा है, जिसमें कैंसर वाली प्रोस्टेट ग्रंथि को हटाने के लिए रोबोटिक आर्म का इस्तेमाल किया जाता है। क्या है यह तकनीक और क्या हैं इसके फायदे, आइए जानें।
प्रोस्टेट कैंसर 65 साल से अधिक उम्र के पुरुषों को होने वाले सबसे आम कैंसर में से एक है। ऐसी सभी दिक्कतों में आमतौर पर सर्जिकल हस्तक्षेप की जरूरत होती है। आजकल प्रोस्टेट कैंसर नई रोबोटिक आर्म वाली तकनीक से भी निकाला जा सकता है, जिसमें परंपरागत सर्जरी के मुकाबले बेहद कम समस्याएं आती हैं। पिछले दो दशकों के दौरान, मेडिकल सर्जरी की दिशा में शोधकर्ताओं ने काफी प्रगति की है, जिसमें प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के लिए रोबोटिक तकनीक भी खास है। रोबोटिक प्रोस्टेटेक्टामी परंपरागत प्रोस्टेट रिमूविंग सर्जरी के मुकाबले कई तरह से खास और फायदेमंद है।
रोबोटिक प्रोस्टेटेक्टामी से सर्जन को प्रोस्टेट ग्रंथि और इसके आस-पास की नसें परंपरागत तरीके के मुकाबले ज्यादा स्पष्ट दिखती हैं। ज्यादा लचीले और घुमाने में आसान रोबोटिक आर्म्स के इस्तेमाल से हो रही सर्जरी ज्यादा सफल भी होती है। प्रोस्टेट पुरुष के प्रजनन संबंधी अंग का एक बाहरी ग्लैंड है। प्रोस्टेट ग्लैंड सीमेन और स्पर्म को सुरक्षित रखने वाले फ्ल्यूइड बनाने के अलावा यूरीन को कंट्रोल करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
क्या है प्रोस्टेटेक्टामी
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प्रोस्टेटेक्टामी एक सर्जरी प्रक्रिया है, जिसमें पूरा प्रोस्टेट ग्लैंड हटा दिया जाता है। यह उस मामले में किया जाता है, जिसमें बीमारी का शुरुआत में ही पता लग जाता है और यह पक्का होता है कि कैंसर ग्लैंड के बाहर तक नहीं फैला है। कई बार प्रोस्टेट कैंसर बहुत धीरे-धीरे बढ़ता है। ऐसे में मरीजों को इलाज की जरूरत नहीं होती, लेकिन ग्लैंड की नियमित जांच की जरूरत होती है।
इलाज के सर्जिकल विकल्प
ऐसे मामलों में, जिनमें कैंसर का पता शुरू में ही लग जाता है, प्रोस्टेट ग्लैंड के बाहर फैलने से पहले प्रोस्टेट ग्रंथि और इसके आस-पास के कुछ ऊतकों को हटाने के लिए सर्जिकल हस्तक्षेप किया जाता है। इससे प्रभावी रूप से कैंसर बाहर फैलने से रुक जाता है। रेडिकल प्रोस्टेटेक्टामी के नाम से जानी जाने वाली यह प्रक्रिया प्रोस्टेट कैंसर के इलाज का सबसे आम तरीका है।
कैसे होता है इसका इस्तेमाल
ओपेन प्रोस्टेटेक्टामी: इसमें एक बड़ा कट लगता है, जो नाभि से लेकर प्युबिक बोन तक होता है। ऐसे में यह समझा जा सकता है कि इसमें रक्त का कितना नुकसान होता है, कितना दर्द झेलना पड़ता है और कट का घाव भरने में कितना लंबा समय लगता है।
लैप्रोस्कोपिक प्रोस्टेटेक्टामी: इस तरीके में एक छोटा-सा चीरा लगता है। ओपन प्रोस्टेटेक्टामी के मुकाबले बेहद कम रक्त का नुकसान होता है और रोगी की रिकवरी बहुत जल्दी होती है।
रोबोटिक प्रोस्टेटेक्टामी
प्रोस्टेट कैंसर को हटाने के लिए प्रोस्टेट-असिस्टेड लैप्रोस्कोपिक सर्जरी की दिशा में हुई नई प्रगति ने परंपरागत तरीके की तुलना में कई फायदे हैं। कम चीरा लगाने वाली सर्जरी, रोबोटिक प्रोस्टेटेक्टामी में कम ट्रॉमा होता है और मरीज को आराम जल्दी मिलता है।
रोबोटिक प्रोस्टेटेक्टामी में रोबोटिक इंस्ट्रमेंट से काम किया जाता है। अपने हाथों से ऑपरेशन करने के बजाय डॉक्टर इसमें स्टेट-ऑफ-द-आर्ट रोबोटिक तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। इसमें ज्यादा स्पष्टता और नियंत्रण रहता है। यह सर्जिकल डिवाइस रेजोल्युशन कैमरा से लैस होता है। यह 10 गुना ज्यादा मैग्निफाइड होता है, जिससे प्रोस्टेट और उसके आस-पास के नब्ज और टिश्यूज की 3 डाइमेंशन इमेज दिखाई देती है। इसके साथ ही माइक्रो-सर्जिकल इंस्ट्रमेंट इसे ज्यादा लचीला और घुमावदार बनाते हैं, जिससे किसी भी तरह की गलती होने का आशंका नहीं के बराबर रहती है।
सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें एक छोटे से चीरे,1 से 2 सेंटीमीटर, के जरिए सर्जरी की जाती है। इससे ऑपरेशन के बाद मरीज की रिकवरी भी तेजी से होती है। इस सर्जरी के लिए खास प्रशिक्षण वाले डॉंक्टरों की जरूरत होती है, जो रोबोटिक प्रोसीजर संबंधी सभी जानकारियों से लैस हों।
कैसे काम करते हैं रोबोटिक आर्म
रोबोटिक आर्म कंप्यूटर द्वारा गाइड किए जाते हैं। ऐसे में नव्र्ज और प्रोस्टेट ग्लैंड को कोई नुकसान होने का खतरा नहीं रहता। प्रक्रिया के बाद शक्तिहीनता का खतरा कम रहता है। यह एक ऐसा रिस्क है, जो परंपरागत प्रोस्टेटेक्टामी सर्जरी में अपेक्षकृत ज्यादा होता है।
प्रोस्टेट कैंसर से 'सेक्स लाइफÓ खतरे में?
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एक आंकलन के अनुसार ब्रिटेन में करीब 160,00 लोग ऐसे हैं जिनकी सेक्स लाइफ प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के बाद या तो खत्म हो गई, या ठंडी पड़ गई। प्रोस्टेट कैंसर से जुड़े इस तरह के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। माना जा रहा है कि वर्ष 2030 तक ऐसे मामले दोगुने हो जाएंगे। प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के दौरान सर्जरी, रेडियोथेरेपी और हार्मोन थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है। इन सबके दुष्प्रभावों में से एक इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (स्तंभन दोष) है।
ब्रिटेन में हर साल 40,000 से भी ज्यादा लोगों में प्रोस्टेट कैंसर की पहचान हो रही है। प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे लोगों में से कुछ में शिराएं स्थाई रुप से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इसका नतीजा ये होता है कि उनमें इरेक्शन बना नहीं रह पाता।
कुछ लोगों में इलाज के बाद शरीर से जुड़ी तात्कालिक परेशानियां, तो कुछ में सेक्स से संबंधित मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं। तीन में से दो प्रोस्टेट कैंसर पीडि़त मानते है कि उन्हें इरेक्शन में दिक्कत आती है।
तन्हा सफर
मैकमिलन ने बताया कि पुरुषों को इस बात के लिए भी आश्वस्त करने की जरूरत है कि यदि उन्हें अपने इलाज के बाद सेक्स में परेशानी हो रही है तो, वे आगे आएं। हम उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार हैं।
प्रोस्टेट कैंसर से जिंदगी की जंग जीत चुके लंदन के 63 साल के जिम एन्ड्रूज ने अपनी आपबीती बताई। उन्होंने बताया कि जब पहली बार अपनी इस बीमारी के बारे में उन्हें पता चला तो ऐसा लगा मानो अब मौत उनसे ज्यादा दूर नहीं।
मौत के आगे कामेच्छा को शांत कर देने वाली दवाइयों की जरूरत और यौन शिथिलता की समस्या गौण हो गईं।
एन्ड्रूज ने बीबीसी को बताया, जब तक मुझे ये एहसास होता है कि मेरे जीवित होने की संभावनाएं बाकी है, मेरा सेक्स जीवन खत्म हो चुका था। मैं बर्बाद हो चुका था, हम जैसे लोगों के साथ एक और परेशानी ये है कि हमसे कोई भी इसके बारे में बात नहीं करना चाहता। हम अकेले पड़ जाते हैं।
मरीज़ों को मदद
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तीन में से दो प्रोस्टेट कैंसर पीडि़त मानते है कि उन्हें इरेक्शन में दिक्कत आती है।
संबंधित आंकड़ों से पता चलता है कि अपने इलाज के बाद पीडि़तों में हताशा और अवसाद की ये भावनाएं प्रमुखता से पाई गईं। मगर इसके लिए ज्यादा कुछ नहीं किया जा सका है।
इस परेशानी से जूझ रहे पुरुषों से बेहद सतर्कतापूर्वक संवाद बनाने की ज़रूरत है, यदि समय रहते हस्तक्षेप किया जाए तो कई लोगों को राहत मिल सकती है। प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे व्यक्तियों और इससे निजात पा चुके लोगों को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहित करना जरूरी है।
मैकमिलन कैंसर सपोर्ट चैरिटी चाहती है कि प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे मरीजों को अनुभवी नर्सें, बेहतर मनोवैज्ञानिक समर्थन और फिजियोथेरेपिस्ट ज्यादा से ज्यादा संख्या में उपलब्ध हों।
इसके अलावा पुरुषों को इस बात के लिए भी प्रोत्साहित करना होगा कि वे प्रोस्टेट कैंसर से जूझने के दौरान अपने स्थानीय डॉक्टर की भी मदद लें। एक व्यक्ति जो प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहा होता है, अपने इरेक्शन की समस्या को सामाजिक कलंक के रुप में देखता है। वो कहते हैं, कई लोग इसे मर्दानगी की कमी से जोड़ते हैं। अपने इरेक्शन को बनाए रख पाने में असफल होने से उनमें हीनता की भावना आ जाती है। वे इस समस्या पर बात करने से भागते हैं, अक्सर वे अपने पार्टनर से भावनात्मक रुप से दूर हो जाते हैं, समाज में अलग-थलग पड़ जाते हैं। परिणाम ये होता है कि मामला और गंभीर हो जाता है।
कैसे फैलता है प्रोस्टेट कैंसर
प्रोस्टेट कैंसर फैलने के कई कारण हैं, लेकिन शुरूआती अवस्था में प्रोस्टेट कैंसर के फैलने का कारण आनुवंशिक होता है। आनुवंशिक डीएनए प्रोस्टेट कैंसर होने का सबसे प्रमुख कारण है। प्रोस्टेट ग्लैंड यूरीनरी ब्लैडर के पास होती है। इस ग्रंथि से निकलने वाला पदार्थ यौन क्रिया में सहायक बनता है। आमतौर पर उम्र बढऩे के साथ ही प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना ज्यादा होती है। लेकिन आजकल की दिनचर्चा के कारण यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है। दोनों पैरों में कमजोरी व पीठ में दर्द महसूस होता है। बढ़ती उम्र, मोटापा, धूम्रपान, आलस्यपूर्ण दिनचर्या और अधिक मात्रा में वसायुक्त पदार्थों का सेवन करने के कारण प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना ज्यादा होती है।
बढ़ती उम्र
प्रोस्टेट कैंसर सबसे ज्यादा 40 की उम्र के बाद होता है। उम्र बढऩे के साथ ही प्रोस्टेट ग्लैंड बढऩे लगती है, जो कि कैंसर होने की संभावना को बढ़ाती है। 50 साल की उम्र पार कर रहे लोगों में यह बहुत तेजी से फैलता है। प्रोस्टेट कैंसर के हर 3 में से 2 मरीजों की उम्र 65 या उससे ज्यादा होती है।
खानपान
आधुनिक जीवनशैली में खान-पान भी प्रोस्टेट कैंसर के फैलने का प्रमुख कारण बन गया है। लेकिन अभी इस बारे में कोई निश्चित निष्कर्ष नहीं निकल पाया है। जो आदमी लाल मांस (रेड मीट) या फिर ज्यादा वसायुक्त डेयरी उत्पादों का प्रयोग करते हैं, उनमें प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना ज्यादा होती है। जंक फूड का सेवन भी प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना को बढ़ाता है।
मोटापा
मोटापा कई बीमारियों की जड़ है। मोटे लोगों को डायबिटीज एवं कई सामान्य बीमारियॉं होना आम बात है। लेकिन मोटापा प्रोस्टेट कैंसर के फैलने का एक कारण है। मोटापे से ग्रस्त लोगों को प्रोस्टेट कैंसर होने की ज्यादा संभावना होती है। लेकिन इस तथ्य की पुष्टि नहीं हो पाई है कि मोटापा भी प्रोस्टेट कैंसर होने का प्रमुख कारण है। लेकिन कुछ अध्ययनों में यह बात सामने आई है।
धूम्रपान
धूम्रपान करने से मुॅंह और फेफड़े का कैंसर तो होता है, लेकिन धूम्रपान प्रोस्टेट कैंसर को भी बढ़ाता है।
आनुवांशिक बीमारी
प्रोस्टेट कैंसर आनुवंशिक भी होता है। घर में अगर किसी भी व्यक्ति या रिश्तेदार को प्रोस्टेट कैंसर होता है तो बच्चों में इसकी होने की संभावना ज्यादा होती है।
प्रोस्टेट कैंसर की जांच करवाएं
हालांकि इस बात पर काफी विवाद रहा है कि क्या पुरुषों को प्रोस्टेट कैंसर की जांच समय समय पर करवानी चाहिए? पर सच्चाई यह है कि पुरुषों को यह जानने का हक़ है अगर वह बिमारी की चपेट में आ सकते हैं। पीएसए जांच और डिजिटल रेक्टल जांच द्वारा किसी भी उम्र के पुरुष के बारे में प्रोस्टेट स्वास्थ्य को लेकर जानकारी मिलती है और फिर वह अपनी चिकित्सा के बारे में सोच सकते हैं।
जानें प्रोस्टेट कैंसर के लक्षणों को
प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण
प्रोस्टेट कैंसर होने पर रात में पेशाब करने में दिक्कत होती है।
रात में बार-बार पेशाब आता है और आदमी सामान्य अवस्था की तुलना में ज्यादा पेशाब करता है।
पेशाब करने में कठिनाई होती है और पेशाब को रोका नही जा सकता है यानी पेशाब रोकने में बहुत तकलीफ होती है।
पेशाब रुक-रुक कर आता है, जिसे कमजोर या टूटती मूत्रधारा कहते हैं।
पेशाब करते वक्त जलन होती है।
पेशाब करते वक्त पेशाब में खून निकलता है। वीर्य में भी खून निकलने की शिकायत होती है।
शरीर में लगातार दर्द बना रहता है।
कमर के निचले हिस्से या कूल्हे या जांघों के ऊपरी हिस्से में जकडाहट रहती है।
प्रोस्टेट कैंसर का इलाज
वृद्धावस्था में प्रोस्टेट कैंसर होने की ज्यादा संभावना होती है। यदि प्रोस्टेट कैंसर का पता स्टेज-1 और स्टेज-2 में चल जाए तो इसका बेहतर इलाज रैडिकल प्रोस्टेक्टामी नामक ऑपरेशन से होता है। लेकिन, यदि प्रोस्टेट कैंसर का पता स्टेज-3 व स्टेज-4 में चलता है तो इसका उपचार हार्मोनल थेरैपी से किया जाता है। गौरतलब है कि प्रोस्टेट कैंसर की कोशिकाओं की खुराक टेस्टोस्टेरान नामक हार्मोन से होती है। इसलिए पीडि़त पुरुष के टेस्टिकल्स को निकाल देने से इस कैंसर को नियंत्रित किया जा सकता है। खान-पान और दिनचर्या में बदलाव करके प्रोस्टेट कैंसर की संभावना को कम किया जा सकता है। ज्यादा चर्बी वाले मांस को खाने से परहेज कीजिए। धूम्रपान और तंबाकू का सेवन करने से बचिए यदि आपको प्रोस्टेट कैंसर की आशंका दिखे तो चिकित्सक से संपर्क जरूर कीजिए।
प्रोस्टेट कैंसर से बचने के लिए ग्रीन टी पीएं
जो पुरुष ग्रीन टी पीते हैं उनमें प्रोस्टेट कैंसर का रिस्क काफी कम होता है और उनका प्रोस्टेट स्वास्थ्य अच्छा रहता है। अपनी रोज़मर्रा की जि़ंदगी में ग्रीन टी को शामिल करने से आपके प्रोस्टेट स्वास्थ्य पर काफी अच्छा असर पड़ेगा। गर्म ग्रीन टी किसी भी समय के खाने के साथ लिया जा सकता है। आइस्ड ग्रीन टी और ग्रीन टी स्मूदी बना कर भी पीया जा सकता है।
नाभि स्पंदन से रोग की पहचान
प्राकृतिक उपचार चिकित्सा पद्धति
आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में रोग पहचानने के कई तरीके हैं। नाभि स्पंदन से रोग की पहचान का उल्लेख हमें हमारे आयुर्वेद व प्राकृतिक उपचार चिकित्सा पद्धतियों में मिल जाता है। परंतु इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि हम हमारी अमूल्य धरोहर को न संभाल सके।
कैसे होती है नाभि स्पंदन से रोगों की पहचान
यदि नाभि का स्पंदन ऊपर की तरफ चल रहा है याने छाती की तरफ तो अग्न्याश्य खराब होने लगता है। इससे फेफड़ों पर गलत प्रभाव होता है। मधुमेह, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं। यदि यह स्पंदन नीचे की तरफ चली जाए तो पतले दस्त होने लगते हैं। बाईं ओर खिसकने से शीतलता की कमी होने लगती है, सर्दी-जुकाम, खाँसी, कफजनित रोग जल्दी-जल्दी होते हैं।
यदि यह ज्यादा दिनों तक रहेगी तो स्थायी रूप से बीमारियाँ घर कर लेती हैं। दाहिनी तरफ हटने पर लीवर खराब होकर मंदाग्नि हो सकती है। पित्ताधिक्य, एसिड, जलन आदि की शिकायतें होने लगती हैं। इससे सूर्य चक्र निष्प्रभावी हो जाता है। गर्मी-सर्दी का संतुलन शरीर में बिगड़ जाता है। मंदाग्नि, अपच, अफरा जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं। यदि नाभि पेट के ऊपर की तरफ आ जाए यानी रीढ़ के विपरीत, तो मोटापा हो जाता है। वायु विकार हो जाता है। यदि नाभि नीचे की ओर (रीढ़ की हड्डी की तरफ) चली जाए तो व्यक्ति कुछ भी खाए, वह दुबला होता चला जाएगा।
नाभि के खिसकने से मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षमताएँ कम हो जाती हैं। नाभि को पाताल लोक भी कहा गया है। कहते हैं मृत्यु के बाद भी प्राण नाभि में छ: मिनट तक रहते है। यदि नाभि ठीक मध्यमा स्तर के बीच में चलती है तब स्त्रियाँ गर्भधारण योग्य होती हैं। यदि यही मध्यमा स्तर से खिसककर नीचे रीढ़ की तरफ चली जाए तो ऐसी स्त्रियाँ गर्भ धारण नहीं कर सकतीं।
अकसर यदि नाभि बिलकुल नीचे रीढ़ की तरफ चली जाती है तो फैलोपियन ट्यूब नहीं खुलती और इस कारण स्त्रियाँ गर्भधारण नहीं कर सकतीं। कई वंध्या स्त्रियों पर प्रयोग कर नाभि को मध्यमा स्तर पर लाया गया। इससे वंध्या स्त्रियाँ भी गर्भधारण योग्य हो गईं। कुछ मामलों में उपचार वर्षों से चल रहा था एवं चिकित्सकों ने यह कह दिया था कि यह गर्भधारण नहीं कर सकती किन्तु नाभि-चिकित्सा के जानकारों ने इलाज किया।
उपचार पद्धति आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों में पूर्व से ही विद्यमान रही है। नाभि को यथास्थान लाना एक कठिन कार्य है। थोड़ी-सी गड़बड़ी किसी नई बीमारी को जन्म दे सकती है। नाभि-नाडिय़ों का संबंध शरीर के आंतरिक अंगों की सूचना प्रणाली से होता है।
यदि गलत जगह पर खिसक जाए व स्थायी हो जाए तो परिणाम अत्यधिक खराब हो सकता है। इसलिए नाभि नाड़ी को यथास्थल बैठाने के लिए इसके योग्य व जानकार चिकित्सकों का ही सहारा लिया जाना चाहिए। नाभि को यथास्थान लाने के लिए रोगी को रात्रि में कुछ खाने को न दें। सुबह खाली पेट उपचार के लिए जाना चाहिए, क्योंकि खाली पेट ही नाभि नाड़ी की स्थिति का पता लग सकता है।
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